शिवराज कैबिनेट में कोई किसी का भक्त नहीं या यूं कहें कि कोई भी किसी का विश्वासपात्र नहीं है, मसलन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अपने किसी भरोसेमंद साथी को कैबिनेट में नहीं ले पाए। इसके कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। शिवराज को भी भाजपा ने कड़ा संदेश दिया है। संकेत साफ हैं कि अब स्वच्छ सरकार और सख्त प्रशासन देने की चुनौती है। 23 मार्च 2020 को जब मुख्यमंत्री के रूप में शिवराज सिंह चौहान ने चौथी बार शपथ ली थी तो चारों ओर एक ही सवाल कौंध रहा था कि आखिर चौथी पारी में भी शिवराज की सरकार वैसी ही चलेगी जैसी पहले चली थी। क्या वही अफसरों का राज होगा। क्या वही शिवराज भक्तों की कैबिनेट होगी। इन सारे सवालों का जवाब भाजपा हाईकमान ने दे दिया है।
पार्टी ने एक सप्ताह पहले पांच लोगों को कैबिनेट बनाने की मंजूरी दी थी। तमाम बड़े नेता इस प्रयास में थे कि कैबिनेट की संख्या पांच से बढ़ाकर 15 हो जाए ताकि उनका निजी संतुलन बना रहे, पर हाईकमान तमाम कोशिशों के बाद भी डगमगाया नहीं। वह छोटी कैबिनेट के अपने फैसले पर टिका रहा और अंत में पांच मंत्रियों को ही शपथ दिलाई गई। लंबे समय बाद भारतीय जनता पार्टी में पहली बार देखने को मिला है कि कैबिनेट के गठन में न तो किसी गुट विशेष के नेता को महत्व दिया गया और न ही किसी की पसंद या नापसंद को तरजीह दी गई।
पांच मंत्रियों में नरोत्तम मिश्रा ब्राह्मण वर्ग से आते हैं। पूर्ववर्ती सरकार में वे कद्दावर मंत्री रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान के संकटमोचक माने जाते रहे हैं। कमलनाथ सरकार को बेदखल काम करने में भी उनका विशेष योगदान रहा है। तो नंबर एक पर कैबिनेट में आना और आने का दावा उनका बनता था और नंबर वन पर ही उन्हें शपथ दिलाई गई। भाजपा ने जो दूसरा नाम चुना, वह कमल पटेल का है। पटेल भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी रहे हैं। भाजपा की सरकार में ही मंत्री रहते हुए उन्होंने राजस्व और चिकित्सा शिक्षा जैसे विभागों में अभूतपूर्व काम किया था। कमल पटेल लंबे समय से भाजपा में उपेक्षित थे। पहली बार ऐसा मौका आया, जब पटेल को बिना किसी लॉबिंग के मंत्री बनने का मौका मिला। पटेल जाट हैं और पिछड़ा वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं।
नंबर तीन पर हैं मीना सिंह, वे आदिवासी वर्ग से हैं। मीना भी लंबे समय से उपेक्षा झेल रही थीं। मीना सिंह पहले राज्यमंत्री हुआ करती थीं बाद में उन्हें हटा दिया गया था। मीना सिंह को कैबिनेट में लेकर दो निशाने साधे गए एक तो महिला को स्थान दिया गया है दूसरा एक नया आदिवासी चेहरा पेश किया गया है, जिसकी लंबे समय से कवायद चल रही थी। मीना सिंह को विंध्य क्षेत्र का प्रतिनिधि माना जा सकता है। शिवराज कैबिनेट में शामिल दो अन्य मंत्री पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक हैं। दरअसल, मध्य प्रदेश में भाजपा की शिवराज सरकार बनाने में सिंधिया मुख्य किरदार रहे हैं। कमलनाथ सरकार में भी सिंधिया ने छह समर्थक मंत्री हुआ करते थे। सिंधिया कांग्रेस छोड़ भाजपा में आए तो उनके साथ विधायकों ने इस्तीफा दिया। यही वजह है कि शिवराज सरकार में सिंधिया को 40 फीसद स्थान मिला। सिंधिया खेमे से शामिल किए गए तुलसी सिलावट अनुसूचित जाति वर्ग से मालवा अंचल से आते हैं। वहीं गोविंद सिंह राजपूत शिवराज सरकार का सवर्ण चेहरा है। राजपूत बुंदेलखंड से हैं। वे सिंधिया के सारथी रूप में पहचाने जाते हैं।