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केन्द्र और राज्य सरकारों को सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा आदेश कहा कोई भी मजदूर भूखा न रहे, किराया भी न वसूला जाए


प्रवासी मजदूरोंं के मुद्दों पर गुरुवार सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई हुई। दो घंटे चली सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों से कहा कि कोई मजदूर भूखा नहीं रहना चााहिए। उनके खाने के साथ ही रहने की बंदोबस्त किया जाए। यदि कोई मजदूर कहीं फंसा है तो उसे बताया जाए कि उसके राज्य तक छोड़ने के लिए ट्रेन या बस कब चलेगी। ऐसे किसी मजदूर से किराया न वसूला जाए। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से सालिसिटर जनरल तुषार मेहता मौजूद रहे। वहीं कुछ राज्य सरकारों के वकीलों ने भी हिस्सा लिया।


फ्री में इलाज देने वाले अस्पतालों की लिस्ट बनाए सरकार


इससे पहले बुधवार को हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि देश में कौन से अस्पताल हैं जो कोरोना वायरस का फ्री या बहुत कम खर्च पर इलाज मुहैया करवा रहे हैं। सर्वोच्च अदालत में याचिका दायर कर मांग की है कि सरकार ने जिन अस्पतालों (निजी और धर्मार्थ) को रियायती दर पर जमीन दी है, वहां कोरोना वायरस का मुफ्त या कम कीमत पर इलाज मुहैया कराए जाए। इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बात कही। अगली सुनवाई के लिए अगले हफ्ते की तारीख तय की गई है। जानिए और क्या हुआ सुनवाई के दौरान





चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सचिन जैन की याचिका पर सुनवाई की। जजों ने सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि जिन अस्पतालों ने रियायती दर पर जमीन ली है या धर्मार्थ काम कर रहे हैं, वहां लोगों को मुफ्त या कम कीमत पर इलाज क्यों नहीं मुहैया हो सकता। इस पर मेहता ने कहा कि कोर्ट जो कह रहा है वह ठीक है लेकिन जमीन देते समय अलग-अलग मामलों में भिन्न-भिन्न शर्तें होती हैं। ऐसे में सभी अस्पतालों के लिए एक-सा आदेश नहीं दिया जा सकता।





चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए सचिन जैन की याचिका पर सुनवाई की। जजों ने सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि जिन अस्पतालों ने रियायती दर पर जमीन ली है या धर्मार्थ काम कर रहे हैं, वहां लोगों को मुफ्त या कम कीमत पर इलाज क्यों नहीं मुहैया हो सकता। इस पर मेहता ने कहा कि कोर्ट जो कह रहा है वह ठीक है लेकिन जमीन देते समय अलग-अलग मामलों में भिन्न-भिन्न शर्तें होती हैं। ऐसे में सभी अस्पतालों के लिए एक-सा आदेश नहीं दिया जा सकता।