पांच दशक के बदलाव की क्रमिक कथा।
मै सिंगरौली हूं और सुनिए मेरी कहानी के पिछले अंक में आपने पढ़ा कि अपने अस्तित्व के प्रादुर्भाव काल से लेकर पचास साल पहले तक की कथा गाथा पढ़ी। और अब आज आगे पढ़िए आज से पचास साल पहले से आज तक की कथा गाथा।मेरे भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में बदलाव की जिस कहानी ने अपने स्वरूप को धारण किया था वह अनंत काल तक अपरिवर्तित रहा।
बदलाव की पहली किरण लेकर एन सी डी सी यहां आई और उम्मीदों के किरणों पर सवार उसके भविष्य के जज्बाती सपने तब के संस्कृति और सभ्यता को आशान्वित करते हुए भविष्य के सपनों को इस क्षेत्र में अनुप्राणित किया। परिणाम स्वरूप लोगों में विकास का एक अद्भुत प्रगतिगामी मार्ग प्रशस्त होता हुआ दिखाई दिया। लोगों ने बदलाव की नई चेतना को महसूस किया और तत्परता से उसे अपनाने की उत्कंठा ब्यक्त की। यही तो कॉरपोरेट कल्चर चाहती थी। उसने सपनों का ऐसा चार डाला की यहां के भोले और सरल हृदय सीधे साधे लोग अपने फसने वाले अदृश्य जाल को देख ही नहीं पाए।
प्रगति का जो खाका उनके दिलों दिमाग पर खींचा गया उसकी अमित छाप दिनों दिन और अधिक सघन और विस्तार वादी आकर लेती रही।
आधुनिक शिक्षा, सुलभ यातायात की उपलब्धता, बाजार की चकाचौंध, नए नए परिधान की ललक और तड़क भड़क, निम्नतम वर्ग से निम्न वर्ग के बदलाव का खीचाव, बंजर जमीन और वीरानियों से निजात, सहज सुलभ रोजगार आदि बहुत से ऐसे अनगिनत कारण थे जो कारपोरेट जगत के पांव पसारने से लेकर पांव पखारने तक का सुगम मार्ग प्रशस्त किया।
लोग खुमारी में ही जीते रहे और मनमाने तरीके से जमीनों, संस्कृति और सभ्यताओं का अधिग्रहण कर लिया गया। कॉर्पोरेट जगत ने अपनें पांव रखते ही सबसे पहले पुलिस प्रशासन की अगवानी की और परिणाम स्वरूप उनके सभी काम सुगम होते गए। निरीह जनता बस हाथ जोड़ने वाली मुद्रा में स्वागतार्थ खड़ी रही। कॉर्पोरेट जगत ने सभी वर्गों का भरपूर और मखतूल खयाल रखा। उसकी विस्तार वादी गाड़ी सरपट दौड़ पड़ी। लोगों को मुआवजा कितना और किस प्रकार मिला वह अतीत के गर्त में गर्त हो गया। हां चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां लोगों को खूब भाई। कंटीन का सस्ता खाना लोगों को खूब रास आया और वे खेती किसानी करना अपनी तौहीनी समझने लगे परंतु उन को यह नहीं पता चला कि पैर के नीचे से जमीन खिसकना कितना भारी पड़ता है। वह रोज नए-नए सपने देखने में ही मशगूल रहे और सपने किसी और के ही साकार होते रहे और उनके भ्रम इसलिए बढ़ते गए कि उनको नए-नए स्कूल का सपना दिखाया गया। नए-नए कॉलोनियों का सृजन दिखा नए-नए परिवर्तनों का सतरंगी जाल दिखा परंतु अपनी आजादी अपने संस्कृति और अपनी सभ्यता का सिकुड़ता हुआ दायरा उनको नजर नहीं आया।परिवर्तन कुछ इस तरह आगे बढ़ा कि यहां पर एनसीडीसी के विकसित स्वरूप के रूप में सीसीएल ने अपना पांव रखा और सारे अवसरों को तुरंत लागू किया और लगातार 10 वर्षों के दौरान 10 परियोजनाएं खड़ी कर लीं गई विस्तार इतना बढ़ा की सीसीएल के स्वरूप को भी बदल कर के सिंगरौली को को एनसीएल के रूप में एक नया स्वरूप देना पड़ा जिसमें मुख्यालय सिंगरौली के अधीन 10 परियोजनाएं लगभग 20 किलोमीटर के भीतर अपना जाल बिछाने में पूरी तरह से सफल हुई। उनके सफलता के पीछे जो सबसे बड़ी सहूलियत की बात थी वह सीधी जिले का मुख्यालय सीधी में होना और मिर्जापुर जिले का मुख्यालय मिर्जापुर में होना था। यहां की जनता ने तो मिर्जापुर मुख्यालय जाना चाहती थी और ना ही सीधी जिला मुख्यालय जाना चाहती थी।
अतः जितने भी विवादित मुद्दे थे सबसे जनता ने समझौता किया और कारपोरेट जगत अपनी नियोजित उपलब्धि और अवसर पर खूब फलता फूलता और झूमत रहा। जैसा कि आप जानते हैं कि कोई भी बीमारी अकेले नहीं आती है साथ में बहुत सारी अन्य बीमारियों को भी लेकर के आती है उसी तरीके से एनसीएल अकेले नहीं आया वह अपने साथ में एनटीपीसी, पावर ग्रिड कारपोरेशन,भेल, ई पी आई, एन पी सी सी जैसे और यू पी एस बी , ऑल इंडिया लिमिटेड, बैंक आदि जैसे बहुत सारे नए आधुनिक बीमारियों को भी साथ लाया। और इस प्रकार से प्रगति का चकाचौंध लोगों को अनवरत आलोकित करता रहा लोग बाग तो इस खुष्फहमी के अंधेरे में जीते रहे कि आने वाला भविष्य अत्यंत उज्जवल और गौरव मय होगा। परंतु जैसे ही सड़कों पर धूल उड़ाते ट्रकों ने अपने तांडव शुरू किया लोगों के सपने टूटते हुए दिखाई दिए और प्रगति ने जब अंगड़ाई ली तो पूरा सिंगरौली क्षेत्र पर्यावरण प्रदूषित होकर जीने लायक भी नहीं बचा। यह विडं…