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पहली बारिश में ही डराने लगा मौत का पहाड़।

 



 


एनसीएल खड़िया परियोजना का ओबी पहाड़ कहर ढा रहा चिल्काटांड पर।


सांसों में घुलता कोयला, जिंदगी बन गयी जहर।


 अनोखी आवाज़ शक्तिनगर (सोनभद्र)। खड़िया परियोजना खदान से सटे विस्थापित गांव चिल्काटांड पर मौत का साया हमेशा मंडराता रहता है। गांव के एक तरफ रेलवे लाईन है तो दूसरी तरफ दैत्यनुमा ओबी का पहाड़, मौत के पहाड़ के रूप में खड़ा है। ग्रामीणों को हमेशा यह डर बना रहता है कि बारिश के दिनों में यदि ओबी पहाड़ भूस्खलित हुआ तो समूचे गांव में मौत का कहर बरपा सकता है। मानसून आने से पहले पहली बारिश में ही ओबी पहाड़ का मलबा बहकर चिल्काटांड के दिया-पहरी व रानी-बारी के मुहाने पर आना और ओबी पहाड़ में बारिश के पानी से बने कटान व दरार, भविष्य के तांडव का ट्रेलर दिखा रहे हैं।


सोनभद्र जिले के म्योरपुर ब्लाॅक के शक्तिनगर थाना क्षेत्र में स्थित है चिल्काटांड ग्राम पंचायत, जहां गांव के बगल में कोयला खदान एवं ओबी पहाड़ होने से पूरे दिन गांव में कोयले व धूल का गुब्बार उड़ता रहता है। जिससे ग्रामीणों का जीवन नर्क बन गया है। आए  दिन किसी ना किसी बीमारी के चपेट में आकर आर्थिक रूप से हलकान रहते हैं ग्रामीण और दूषित वातावरण में नौनिहालों के भविष्य पर कालिख पुत रही हैं।


 



 


1977 में एनटीपीसी ने अपने प्लांट से विस्थापितों को चिल्काटांड में बसाया था, तब गांव हरा-भरा व साफ-सुथरा था। लेकिन चिल्काटांड की खुशियों को तब नजर लग गई जब एनसीएल ने गांव के बगल में खड़िया परियोजना कोयला खदान खोलने की मंजूरी दे दी। खदान सुरक्षा नियमों के अनुसार आबादी से 700 मीटर दूरी पर खदान होना चाहिए लेकिन चिल्काटांड के लगभग 100 घर खदान बाउंड्री से लगभग 50 मीटर की जद में हैं। ऐसे में कभी भी कोई बड़ा हादसा होने की संभावना से ग्रामीणों का जीवन भय के माहौल में गुजर रहा है।


अभी मानसून आया भी नहीं और हल्की बारिश में ही ओबी पहाड़ का मलबा बहकर गांव के मुहाने पर आना और ओबी पहाड़ में बारिश के कारण बने दरार, खतरे की घंटी की ओर इशारा कर रहे है। अगर अभी नहीं चेते तो चिल्काटांड का नाम सिर्फ़ नक्शे पर होगा और बड़ी आबादी जमिंदोदज होने के कगार पर खड़ी है। ओबी का पहाड़, मौत का पहाड़ बन दरवाजा खट-खटा रहा है और अधिकारियों के कान पर जूं तक नहीं रेंग रहा।


 



 


सोनभद्र के 2012 के तत्कालीन जिला कलेक्टर सुहास एलवाई ने चिल्काटांड के किनारे दैत्यनुमा खड़े ओबी पहाड़ को खतरे का पहाड़ बताया था लेकिन विस्थापितों की आवाज़ कोई सुनने वाला नहीं और जिला कलेक्टर के रिपोर्ट पर आज तक कोई फौरी कारवाई नही हुई है।